जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय जवानी (किशोरावस्था)

जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय जवानी (किशोरावस्था)

Hello दोस्तों आज मैं आपसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय जवानी (किशोरावस्था) के बारे में अपना नजरिया शेयर करुंगी। 

ये वो समय है जब हम अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेते है जिनपे की हमारा आगे का पूरा जीवन निर्भर करता है, जैसे कौन सी प्रोफेशनल स्टडी करें,आगे जॉब करें या व्यवसाय करे और शादी कब करें इत्यादि।

निर्णय लेने के लिए हमें अपने आपको जानना जरुरी होता हैं की हम अपने आप से क्या चाहते है और हमें क्या चीज़ करने में ख़ुशी मिलती है
क्योंकि हो सकता है या कह लीजिये की होता ही है की हमारे माता पिता अपनी भावुक्ता के अनुसार हमें कुछ और बताएं करने के लिए और हमारे रिश्तेदार या समाज हमें कुछ और बताएं करने के लिए।
क्योंकि ये जरुरी नहीं होता है कि हमारी उन चीज़ो में रूचि हो या हम उन चीज़ो के प्रति एम्बिशस हों। मैं आपसे यह नहीं कह रही कि आप अपने माता पिता या रिश्तेदार या समाज के खिलाफ जाएँ। 
बल्कि आप अपने जीवन में क्या करना चाहते है आप के क्या सपने है उन्हें पुरे आत्मविश्वास के साथ अपने माता पिता को बताएं ताकि वह आपकी बात को समझें और आपके निर्णय में आपका सहयोग कर पाएं।

किशोरावस्था

बचपन से हम किशोरावस्था से होते हुए युवावस्था में प्रवेश करते है तब हमारा शरीर ही नहीं मन भी बलवान, उमंगो से भरा हुआ सपनों की दुनियां में खोया हुआ हो जाता है।

बचपन के पास भविष्य होता है, बुढ़ापे के पास भूतकाल होता है और जवानी के पास सिर्फ वर्तमान होता है। न भूतो न भविष्यति।
जवानी सिर्फ वर्तमान में जीना चाहती है आगा पीछा सोचना नहीं चाहती। उसकी मान्यता होती है कि जवानी चार दिन की है।
चार दिन की चांदनी और फिर अन्धेरी रात। इसलिए युवा जल्दी जल्दी सब कुछ भोग लेना चाहता है जी भरकर भोग लेना चाहता है .
इसलिए प्रायः युवा अति करने लगता हैं। उनका स्वभाव अतिरेक वादी हो जाता है और यह अति उन्हें अनेक दुख और झंझ्टों में फसा देती है।

एक बार हम जो आदत डाल लें वह धीरे-धीरे हमारा स्वभाव बन जाती है और उसमें पक्के होते जाते है और हमें मालूम ही नहीं हो पाता कि हम कितने बदलते जा रहे है।

बुरा भी चूंकी हमारा हो जाता है तो हमें अच्छा लगने लगता है और हम यह मानने को तैयार नहीं होते कि यह बुरा है। 
जवानी एक जोश का नाम है एक तेज़ बहाव का नाम है रवानी का नाम है। यह जोश जब जरुरत से ज्यादा बढ़ जाता है तो होश खो जाता है .
इसलिए जवानी में जोश तो होता है होश नहीं होता। जवानी मदहोश बना देती है। और मदहोशी की हालत में जो काम होंगे वें ठीक नहीं होंगे।

जोश के साथ होश का होना बहुत जरुरी है। बचपन एक जिज्ञासा है, बुढ़ापा एक अनुभव है तो जवानी एक पुरुषार्थ है, पराक्रम है। 

एक अदम्य शक्ति है और जिसने इसका होश पूर्वक सदुपयोग किया उसी का जीवन सफल हो गया। हमें इस शक्ति का उचित उपयोग, सिमित उपयोग और हितकारी उपयोग करना चाहिए। 
वरना बाद में पछताना ही हाथ रह जाता है। हमारी शक्ति, हमारी ऊर्जा जब श्रेय मार्ग पर, ऊपर की तरफ, विकास की ओर बढ़ती है उठती है। 
तब यह ‘राम’ बन जाती है यही जब प्रेय मार्ग पर निचे की तरफ बहती है तो काम बन जाती है। युवावस्था में सही होश रखकर राम और काम में उचित सामन्जस्य रखकर अति किये बिना युवा शक्ति का सदुपयोग करना ही दूरदर्शिता व बुद्धिमानी होगी।

आपने इस आर्टिकल को पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद करते है | कृपया अपनी राये नीचे कमेंट सेक्शन में सूचित करने की कृपा करें | 😊😊

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