ईसबगोल का परिचय गुण और प्रयोग

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दोस्तों आज में इस आर्टिकल में आपसे ईसबगोल का परिचय गुण और प्रयोग के बारे में बताऊंगी जो की बहुत लाभकारी है। अक्सर कब्ज़ होने पर खाये जाने वाले इसबगोल के बारे में आप सब जानते होंगे। पर क्या आप इसके परिचय, गुण और प्रयोग के बारे में जानते है। अगर नहीं जानते तो उम्मीद है की इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपके लिए लाभकारी होगी। इसबगोल का परिचय, गुण और प्रयोग इस प्रकार है।

ईसबगोल का परिचय 

यह अशवगोल कुल (प्लांटाजिनेसी) की वनस्पति है। इसके बीजों की भूसी अलग करके औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। जो बाजार में सत ईसबगोल के नाम से पैकेटों में पैक मिलती है। इसका उल्लेख प्राचीनआयुर्वेदिक ग्रंथो में नहीं मिलता। इसका मूल उतपत्ति स्थान फारस है इसलिए यूनानी ग्रंथो में इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भारत में यह पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में और विशेष कर गुजरात प्रान्त में पैदा होती है आधुनिक खोज के अनुसार यह शीतल व शान्ति दायक है और अतिसार रक्तातिसार, पेचिश, अजीर्ण, मलावरोध, ज्वर और दमा रोग में बहुत गुणकारी है।

ईसबगोल के गुण 

ईसबगोल सनिग्ध, भारी, पिच्छिल, मधुर, ग्राही, शीतल वात कारक और पित्त कफ़ नाशक है। रक्तातिसार व रक्तपित्त नष्ट करता है। पेट के लिए बहुत लाभकारी है। यह आंतों के लिए और पेट में मरोड़ के लिए भी बहुत लाभप्रद है। ईसबगोल में कब्ज दूर करने का सबसे बड़ा गुण होता है। 

ईसबगोल का प्रयोग 

ईसबगोल कोष्ठ बद्धता (मलावरोध), पेट में मरोड़ या खुश्की को मिटाती है। पेट साफ रखती है। अतिसार, पेचिश, आंवयुक्त दस्त, पुरानी पेचिश, आंतो के घाव, शवासकष्ट, दमा और ज्वर के लिए बहुत उपयोगी है और पानी के साथ या पानी में गलाकर 2-3 घंटे रखने के बाद फूल जाने पर सेवन की जाती है। यह शक़्कर के साथ लेने पर मूत्र विकार, मूत्राशय, मूत्रनली और वृक्क की पीड़ा में आराम करती है। कब्ज की शिकायत होने पर इसे दूध के साथ लिया जाता है दस्त लगने व पेचिश होने पर इसे ताजे दही के साथ लिया जाता है। इसे लेने की मात्रा 5 से 10 ग्राम है।

नोट 

ईसबगोल का अधिक लम्बे समय तक सेवन करने से अग्नि मांघ होने लगता है जिसका निवारण करने के लिए द्राशसव का प्रयोग करना चाहिए।

आपने इस आर्टिकल को देखा इसके लिए आपका धन्यवाद करते है | इसमें दिए गए
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