Hello दोस्तों जैसे हमारे शरीर को स्वस्थ और निरोग रखने के लिए उचित आहार विहार और स्वास्थ्य सिद्धाँतों का पालन करना आवश्यक है।
उसी तरह वायुमंडल और वातावरण को भी स्वस्थ और विकार रहित रखने का लिए प्रयत्न करना परमावश्यक है क्योंकि दूषित वातावरण से न तो हमारा आहार ही शुद्ध रह सकता है और न हमारा स्वास्थ्य ही।
इसलिए दोस्तों आज मै आपसे वायुमंडल में घुलता जहर (पॉल्यूशन) होने के कारण और बचाव के उपाय के बारे में चर्चा करुँगी।
पॉल्यूशन होने के कारण
रासायनिक पदार्थ पर्यावरण में कई तरह से प्रवेश कर रहे है। उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों के रूप में वे सीधे ही पर्यावरण में पहुँच जाते है।
कारखानों से निकलने वाली गैसे सल्फर डाइ ऑक्साइ, पोलिसायक्लिक हाइड्रोकार्बन्स, नाइट्रोजन ऑक्साइड जलने से बनती है। व्यर्थ पदार्थो के रूप में रसायनों का कचरा नदियों में बहता रहता है।
दुनिया भर के हज़ार रसायनों का उपयोग कीटनाशियों में हो रहा है।अकेले भारत में ही कितने हज़ार टन कीटनाशक दवाएं हर साल पर्यावरण में झोंकी जा रही है।
इसके अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के अन्तर्गत मेले, ठेलों, सड़कों आदि में छिड़का जाता है और बाकि फसलों में लगने वाले कीड़ो को मारने के काम में लाया जाता है।
छिडकी हुई इन दवाओं का पक्षियों जीवजन्तुओ और यहाँ तक कि हम मनुष्यों के शरीर पर भी बुरा असर पड़ रहा है सब्जियों,अनाज और फलों में भी इन दवाइयों की मात्रा अधिक पाई जा रही है।
“सूती कपड़ा मिलों” उर्वरकों के कारखानों, कागज़ मिलों, कीटनाशकों के कारखानों, इस्पात संय्रत्रो और चीनी मिलों से लाखों घन मीटर पानी, टनों रसायनों के साथ नदियों में मिलता है।
इससे जानमाल की हानि का खतरा बढ़ा है। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं का जहर भी वातावरण में फैलता है।
इनमें सल्फर डाइ ऑक्साइडस, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स शामिल है।इनका स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है
“एक और महत्वपूर्ण समस्या है। सामन्यता विकसित राष्ट्रों में जिन कीटनाशक दवाओं पर प्रतिबन्ध होता है वे विकासशील देशों में धड़ल्ले से खुलेआम बिकती है।
1976 में अमेरिका से आयातित कुल कीटनाशकों का 30 प्रतिशत ऐसी दवाओं का था जिनका उपयोग वहां प्रतिबन्धित था।
आज आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को रसायनों के खतरों से आगाह किया जाए और ऐसे संगठनों का विकास हो जो देश के बिगड़ते पर्यावरण के प्रति जागरूक हो
(पॉल्यूशन) से बचाव के 9 उपाय
(1) जब भी दुर्गन्धयुक्त, तीव्र दाहकारी, आंसू लाने वाले और आँखो में जलन करने वाले वायुमंडल या वातावरण का अनुभव हो तब तत्काल ठंडे पानी में कपड़ा गिला कर आँखो पर रखना और नाक पर गीला रुमाल रख लेना चाहिए।
देखना हो तो पतले गीले कपड़े में से झांककर देखें और गीला कपड़ा नाक पर रख कर सांस लें। इससे दूषित वायु का प्रभाव काफी कुछ नष्ट हो जाता है। आँखों पर प्रभाव हो तो गुलाब जल या ठंडे पानी से बार-बार आँखे धोये।
(2) आग जला लें और आग में लकड़ियां डाल कर आग की ज्वालाएं जलाए रखें।अग्नि के प्रभाव से वायु दूर और काफी ऊपर रहती है। अग्नि में सुगन्धित हवन सामग्री लोभान धुप आदि डालते रहें।
(3) आप अपने घर के पॉल्यूशन को कम करने के लिए हवा शुद्ध करने वाले पौधों को लगा सकते है जैसे एरेका पाम, गुलदाउदी, मनी प्लांट, पीस लिली इत्यादि।
(4) पॉल्यूशन की वजह से बाहर कसरत करने से बचे क्योंकि जब आप साँस लेते है तब आप अधिक धूल कणों को साँस के जरिए अन्दर लें जाते है।
(5) जब भी घर से बाहर जाए तब मास्क लगा कर ही बाहर जाए क्योंकि ये आपको सर्दियों में होने वाले फॉग में मौजूद होने वाले धुएं से बचाव करता है और ये गाड़ियों से होने वाले पॉल्यूशन से भी बचाव करता है।
(6) दूषित वातावरण में पानी भी उबाल कर पीना चाहिए क्योंकि ये अगर कोई बीमार है तो भी फ़ायदे मंद होता है और बीमार नहीं है तो भी फायदा देता है होने वाले रोगों से बचाव करता है।
(7) बाजार में खुले बिकने वाले पदार्थ न खरीदे और न ही खाएं। क्योकि अगर हम इन पदार्थो को खरीदते है और खाते है तो भी जल्दी बीमार पड़ते है। बासा खाना भी न खाये।
(8) अपनी पाचन क्रिया का ख्याल रखें और अपच व कब्ज न होने दे पुदीनहरा टाइप की कोई भी औषधि हमेशा घर में रखें।
(9) अगर खांसी, जुकाम, गले में इन्फेक्शन, आँखों में जलन, खुजली, लालिमा, सांस फूलने जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर के पास जाए बिल्कुल भी लापरवाही न करें।
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