आज के समय में मनुष्य अनेक व्याधियों से ग्रस्त है। वह यदि अपने रोग के उपचार के लिए भी ध्यान-योग की तरफ आकर्षित होता है और अपने रोग को ठीक कर पाता है, तो उसकी श्रद्धा ध्यान-योग के प्रति हो ही जाएगी।हो सकता है कि यहीं से मानसिक विकास तथा आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त करने का मार्ग खुल जाये और उसके जीवन का यह अंग बन जाये।
मै इस आर्टिकल में बताना चाहूंगी कि यदि आप केवल रोगो के उपचार के लिए ही योग को अपनायेंगे, तो आप शायद पूर्ण लाभ नहीं उठा सकेंगे, क्योंकि यह औषधि नहीं है। यह जीने कि, आनंदित रहने की एक कला है। इसे जीवन का अंग बनाकर ही लाभ उठाया जा सकता है।
इसलिए मेरा आपसे निवेदन है कि आपका लश्य भले ही अपने रोग को ठीक करना हो, परन्तु ध्यान-योग को अपने जीवन का अंग बनाकर पूरी श्रद्धा तथा विश्वास से शुरू करें और कुछ महीनो तक लगातार अभ्यास करें।तब ध्यान-योग अपना काम कर लेगा, आपकी सोच में, आपके विचारों में परिवर्तन आने लगेगा, आपका आत्मविश्वास बढ़ाएगा और आप स्वस्थ होंगे।
ध्यान-योग का अर्थ (Meditation)
ध्यान योग का अर्थ है-मिलाप।आत्मा का परमात्मा में मिलन को योग कहते है।अपने नियमित अभ्यास से ध्यान-योग की साधना करते समय मनुष्य अंतर्मुखी हो जाता है।उसे पूरी सृष्टि परमात्मामय दिखने लगती है।स्वयं को स्वयं में स्थिर करने की साधना को ”ध्यान-योग” कहते है। स्थूल व सुष्म किसी भी विषय में अर्थात हृदय, भृकुटि, नासिका, ”ॐ” शब्द आदि आध्यात्मिक तथा इष्ट देवता की मूर्ति में चित्त को लगाना ध्यान-योग कहलाता है।
ध्यान-योग किसे कहते है
वर्तमान में जीने को ”ध्यान-योग” कहते है। अपने महाभारत की ये कहानी सुनी होगी कि गुरु से कौरव तथा पांडव दोनों धनुर्विधा सीखते थे। एक दिन गुरु ने परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने दूर पेड़ पर बैठी एक चिड़िया को दिखाया और कहा की चिड़िया की आंख को निशाना लगाओ। फिर गुरु ने एक-एक करके सभी शिष्यों से पूछा की तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ?
किसी ने कहा, ”पेड़ दिखाई दे रहा हे”, किसी ने कहा, ”पेड़ की शाखाएं दिखाई दे रहीं है”, किसी ने कहा, ”टहनी पर बैठी चिड़िया दिखाई दे रही है’‘, किसी ने कहा, ”पत्ते दिखाई दे रहे है”, अंत में अर्जुन ने कहा, ”गुरु जी मुझे तो केवल चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है।” यह सुनकर गुरु ने निशाना लगाने की आज्ञा अर्जुन को दे दी। अर्जुन ने चिड़िया की आंख को बेध दिया। इसे ही ध्यान-योग कहते है।
उदहारण
हर कक्षा में 40-50 विद्यार्थी होते है और उन्हें एक ही अध्यापक पड़ाता है।परन्तु परीक्षा का परिणाम भिन्न भिन्न होता है।कोई प्रथम आता है तो कोई फेल हो जाता है। जो विद्यार्थी प्रथम आता है, वह कक्षा में अध्यापक के पड़ाते समय पूरे मन से अपनी पढ़ाई की और ध्यान देता है और जो विद्यार्थी फेल होता है वह अध्यापक के पढ़ाते समय कक्षा में तो रहता है, परन्तु उसका मन कहीं और होता है।
कभी-कभी ऐसा होता है कि घर से बाहर जाते समय हम ताला लगाते है, मगर हमारा ध्यान कही और ही होता है और हम सोच में पड़ जाते है कि ताला ठीक से लगाया था की नहीं। फिर वापस आकर ताले को देखते है।ऐसी कई घटनाएं हमारे जीवन में प्रायः होती है। मगर ध्यान रखने पर ऐसा नहीं होताहै।ध्यान हमे अपने आप से मिलाता है।ध्यान हमे अंतर्मुखी करता है, हमें स्वयं में स्थित करता है, अपने स्वभाव में ले जाता है।
ध्यान योग से ऊर्जा का केंद्र निर्धारित करना
हमारी सारी ऊर्जा बाहर की और बह रही है।”ध्यान” का मतलब है -हमारी सारी ऊर्जा अंदर की और मुड़ जाये। अभी हमारी ऊर्जा का केंद्र दूसरों में स्थित है। इसलिए कोई हमारी प्रशंसा करता है तो हम फुले नहीं समाते, कोई निंदा करता है तो क्रोध से भर जाते है।कोई प्रवचन सुनते है तो उसके बहाव में बह जाते है। हमारा अपना कोई व्यक्तित्व, कोई अस्तित्व ही नहीं।हमारे जीवन की बागडोर दूसरो के हाथो में है, कभी हम इधर लुढ़क रहे, कभी उधर।
जबकि होना तो यह चाहिए कि हम सब कुछ देखें, सब कुछ सुनें, फिर उस पर विचार करें।हमें क्या करना है, इसका निर्णय हमारा अपना होना चाहिए। हर व्यक्ति अकेला है
आप जैसा कोई दूसरा व्यक्ति न पैदा हुआ था, न अभी है और न होगा।आप अपने संस्कार साथ लेकर पैदा हुए। इसलिए मेरा जीवन कैसा है, मेरी परिस्थितिया कैसी है, मेरा स्वभाव कैसा है, इन सब पर विचार करते हुए निर्णय होना चाहिए।ध्यान आपको वह समझ देता है जिससे आप उचित निर्णय कर अपने जीवन को सुचारु रूप से चला सकें।
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