ध्यान योग-भगवान श्री कृष्ण का ध्यान (Meditation)

Meditation

भारत में अत्यधिक तीर्थस्थान हैं। जंहा योगीजन एकांत में ध्यान योग  करने जाते है,जैसा कि भगवद-गीता में बताया गया है।परंपरागत रूप से, योग किसी सार्वजनिक स्थान में नहीं किया जा सकता, किन्तु जंहा तक कीर्तन-मंत्र योग, अथवा हरे कृष्ण मंत्र के कीर्तन-हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे-के योग का संबध है, उसमे जितने अधिक व्यक्ति सम्मिलित हो, उतना ही अच्छा है।भगवद-गीता में विशेष रूप से बताया गया है कि ध्यान कैसे करें और इसकी जीवन में क्या विशेषता है।

ध्यान योग कैसे करें 

ध्यान योग (Meditation) हमारे लिए बहुत जरूरी है और ध्यान सभी को करना चाहिए क्योकि हमारे हिन्दू धर्म भगवद- गीता में इसका सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। अगर आप भगवद-गीता में दिए गए 18 अध्यायों को पड़ोगे तो आपको पता चल जायेगा कि ध्यान योग क्यों करना चाहिए।

भगवद-गीता के अध्याय 6 में श्लोक || 34 || में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहते है कि हे श्री कृष्ण ! यह मन बड़ा चंचल, प्रमथन स्वभाववाला, बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसलिए उसका वश में करना मै वायु को रोकने की भाँति अत्यंत दुष्कर मानता हूँ।ध्यान का मतलब है कि हमे पूरे दिन में कुछ समय निकाल कर थोड़ी देर के लिए एकांत स्थान में बैठकर जैसा गीता में बताया गया है वैसे ध्यान करें।क्योकि 

भगवद-गीता के अध्याय 6 में श्लोक || 35 || में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है कि हे महाबाहो ! निः सन्देह मन चंचल और कठिनतासे वशमें होनेवाला है, परन्तु हे कुन्तीपुत्र अर्जुन ! यह अभ्यास* और वैराग्य से वशमें होता है।योग करने में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि मन उत्तेजित न हो।

भगवद गीता के अध्याय 6 में श्लोक || 19 || में लिखा है कि जिस प्रकार वायुरहित स्थान में स्थित दीपक चलायमान नहीं होता, वैसी ही उपमा परमात्माके ध्यान में लगे हुए योगी के जीते हुए चित्त की कही गई है।जब दीपक वायुरहित स्थान में होता है तो उसकी लौ सीधी रहती है तथा हिलती नहीं।लौ की तरह मन भी कई तरह की इच्छाओं से ग्रसित है तथा थोड़ी सी उत्तेजना से विचलित हो जाता है। मन की अल्पस्थिरता भी सम्पूर्ण चेतना को बदल सकती है।  

ध्यान योग का महत्व 

ध्यान योग (Meditation) आध्यात्मिक रूप में बहुत श्रेष्ठ माना गया है।ये हमारे जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर आप रोज ध्यान योग करने का नियम बनाते हो तो आप अपने जीवन में इसका महत्व खुद जान जाओगे जैसा कि इसके बारे में


भगवद-गीता के अध्याय 6 में श्लोक || 27 || में लिखा है।क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शान्त है, जो पापसे रहित है और जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ऐसे इस सच्चिदानंदघन ब्रह्मके साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनन्द प्राप्त होता है।


भगवद गीता के अध्याय 6 में श्लोक|| 46 || में लिखा है कि योगी तपस्वियोंसे श्रेष्ठ है, शास्त्रज्ञानियोंसे भी श्रेष्ठ  है और सकाम कर्म करनेवालोंसे भी योगी श्रेष्ठ है, इससे हे अर्जुन ! तू योगी हो। 

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