योग से शरीर का स्वास्थ्य तथा मन की शांति कैसे प्राप्त होती है ?

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नाड़ी-संस्थान तथा मस्तिष्क को स्वस्थ व शांत रखने के लिए योग के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखें बिना आप शरीर को स्वस्थ नहीं रख सकते है।विज्ञान ने आज इतनी उन्नति की है, फिर भी व्यक्ति आज जितना दुखी है उतना पहले कभी नहीं था।

प्रकृति का एक नियम है की सुविधा देने से सुविधा मिलती है।सुख देने से सुख मिलता है, दान देने से धन मिलता है।यदि दूसरा असुविधा में होगा, तो आपको सुविधा मिलना असंभव है।यदि दूसरा दुःखी होगा, तो आपको सुख मिलना मुश्किल है।यह समझने के लिए योग करने की आवश्यकता है।इसलिए हमारे शास्त्रों में प्रतिदिन ऐसी प्रार्थना करने पर बल दिया गया है।

ॐ असतो मा सद्द गमय – ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय – ॐ मृत्योर्मा  अमृतं गमय।  

अर्थ : हे प्रभु मुझे असत्य से सत्य की और ले चलो, अंधेरे से प्रकाश की और ले चलो, मौत से अमृत की ओर लें चलो। 

सर्वेषां स्वसितर भवतु – सर्वेषां शांतिभ्रावतु – सर्वेषां मंगलम भवतु –

सर्वेषां पूर्ण भवतु – लोकाः समस्ताः सुखिनो भवंतु।    

अर्थ : सब शांत हो, सब को शांति मिले, सब का मंगल हो, सब को पूर्णता मिले, पूरा संसार सुखी हो।

 सर्वे भवन्तु सुखिन : – सर्वे संतु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु – माँ कशिचद दुःखभागभवेत। 

अर्थ : सब सुखी हो, सब निरोगी हो, सब भली बातें देखें, कोई दुःखी न हो।

गायत्री मंत्र : ॐ भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुवर्रेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो योनः प्रचोदयात। 

अर्थ : हे प्राण, पवित्रता तथा आनंद के देने वाले प्रभु, तुम सर्वज्ञ, सकल जगत के उत्पादक हो, हम आपके उस उत्तम, पापविनाशक ज्ञान स्वरूप तेज का ध्यान रखते है, हमारी बुद्धि को प्रकाशित करता है।हे पिता,हमारी बुद्धि कभी भी आपसे विमुख न हो, वह सदा ही सत कार्यो में प्रेरित होती रहे।

योग से शरीर का स्वास्थ्य तथा मन की शांति कैसे प्राप्त होती है ? 

  • पहला काम शरीर को शुद्ध तथा स्वस्थ करने का है।योग की शुद्धि क्रियाये, जैसे नेति, धोती, कुंजल, एनिमा, शंख प्रशालन आवश्यक्तानुसार करें।
  • नित्यप्रति योगासनों तथा प्राणायाम का अभ्यास करें।योगासन करते हुए हम अपने शरीर को मोड़ते है, खींचते है फिर ढीला छोड़ते है। 
  • जिससे हमारे शरीर में रक्त की नलियां जो उंगली का बराबर मोटी भी है और बाल के बराबर बारीक़ भी है और साफ तथा शुद्ध होती है।
  • इससे ह्रदय को पूरे शरीर में शुद्ध रक्त पहुंचाने और गंदे रक्त को ह्रदय में वापस लाने में सुविधा होती है।ह्रदय को चौबीस घंटे काम करना पड़ता है।
  • इस अवधि मे वह पूरे शरीर को 8,000 लिटर खून का संचालन करता है।उतने ही रक्त को शरीर के विकार के साथ वापस लेता है और उन्हे शुद्ध होने के लिए फेफड़ो में भेजता है।
  • रक्त शुद्ध होकर वापस ह्रदय में आता है और वहां से पूरे शरीर में जाता है।15 सेकंड का यह चक्र जन्म से मृत्यु तक चलता रहता है।
  • हम दिन भर काम करके थक जाते है, तो आराम करते है।रात में 6-8 घंटे सोते भी है।
  • परंतु ह्रदय तब भी काम करता है, जबकि उसे भी आराम चाहिए और उसे आराम देने का एक ही तरीका है कि उसकी रक्त-संचालन की नलियों को साफ रखा जाए। 
  • ताकि वह सुविधापूर्वक पूरे शरीर के रक्त का संचालन कर सके और उसे वापस लेकर फेफड़ो में भेजकर शुद्ध कर सके।यह काम उन्हें धक्के लगाकर न करना पड़े।जिन अंगो में शुद्ध रक्त जायेगा, वे अंग पुष्ट होंगे, रोगमुक्त होंगे।
  • योगासनों व प्राणायाम से हमारे फेफड़े शुद्ध हो जाते है।छाती की मांसपेशियो में लचक आ जाती है, जिससे फैलने व सिकुड़ने की उनकी शक्ति बढ़ जाती है।
  • फलतः वे अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करने लगते है और अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस विकार के रूप में नाक से बाहर निकाल देते है।
  • योगासनों से हम अपने शरीर को साफ व अनुशासित करते है।जिस प्रकार आप अपने घर की व्यवस्था करते है,प्रतिदिन उसकी सफाई करते है, सामान को यथास्थान रखते है।
  • ताकि समय पर ढूंढ़ने पर परेशानी न हो, बच्चों को समय पर स्कूल भेजते है, समय पर भोजन बनाते है, ताकि व्यक्ति समय पर अपने काम पर जा सकें।
  • इस प्रकार की व्यवस्था करने से आप परेशान नहीं होते। घर में बात-बात पर झगड़ा नहीं होता और वातावरण तनावमुक्त रहता है।
  • ठीक उसी प्रकार प्रतिदिन नियमित रूप से योग करने से हम अपने शरीर को शुद्ध व तनाव मुक्त रखते है।शरीर की विकार-मुक्ति के चारों मार्ग-नासिका, त्वचा, गुर्दे और गुदा सक्रिय रहते है।
  • इससे शरीर में विकार रुकता नहीं।शरीर शिथिल व शांत रहता है।

ये भी देखे : ध्यान योग-भगवान श्री कृष्ण का ध्यान 

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