जीवन में दुःख का आना
Hello दोस्तों आज में आपके साथ अपने इस आर्टिकल में जीवन में दुःख का आना के बारे में अपने विचार व्यक्त करुँगी।जिस प्रकार हमारे जीवन में सुख आता है उसी प्रकार हमारे जीवन में दुःख भी आता है।
सुख तो सभी भोगना चाहते है।परन्तु दुःख भोगना कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता।लेकिन फिर भी हमे दुःख भोगना ही पड़ता है।
क्योंकि इसका कारण यह है की कोई भी व्यक्ति अपने किये हुए कर्मो का फल भोगने से बच नहीं सकता।हमारे कर्म अच्छे हो या बुरे उसका फल तो हमे भोगना ही पड़ता है।
जो व्यक्ति समझदार होता है वो प्रत्येक दुःख को अपने ही कर्मो का निश्चित परिणाम मानता है और शान्त स्वभाव से शान्तिपूर्वक उन्हें भोग लेता है।
जबकि ये बात कहने में बहुत कड़वी और बुरी लगती है।जब कोई दुखी व्यक्ति को यह कहे की ये सब तुम्हारी करनी का फल है अब भोगो इसे।पर ऐसा कोई हमारे मुँह पर नहीं बोलता।
बल्कि हमदर्दी के नाते मीठी-मीठी, चुपड़ी, चिकनी बाते बनाकर उस दुखी व्यक्ति को सान्त्वना देनी ही पड़ जाती है।
अब कोई स्त्री विधवा हो जाये या किसी का कारोबार नष्ट हो जाये तो आप वहां ये नहीं कह सकते की ये तुम्हारी करनी का फल है।
परन्तु वास्तविकता और कड़वा सत्य यही है और प्रतेक व्यक्ति इसे मानने और भोगने के लिए विवश है।लेकिन जो व्यक्ति बुद्धिमान है, ईशवर का सच्चा भक्त है और तत्व ज्ञानी है तो वे स्वयं इसे कर्म गति समझ कर, अपने कर्मो का फल समझकर और ईशवर की न्याय व्यवस्था मानकर चुपचाप भोग लेता है और ईशवर से कोई शिकायत नहीं करता।
क्योकि ईशवर का भक्त भगवान से कभी शिकायत नहीं करता बल्कि अपने ईशवर से हर बात में राजी रहता है और उसे धन्यवाद देता रहता है।
उसे चाहे जीवन में सुख मिले या दुःख वह हर हाल में अपने सब कर्मो का फल मानकर स्वीकार कर लेता है।ऐसा करने का बहुत बड़ा लाभ है।
अपने कर्मो के फल सरलता और शांति के साथ भोगने से उस कर्म का फल क्षीण हो जाता है और यदि उस फल को दुखी होकर कलप कर या शिकायत करते हुए भोगा तो फिर से आगे के लिए दुःख के बीज बो लिए।
इसीलिए संत महात्मा और सज्जन व्यक्ति शान्ति और प्रसन्तापूर्वक दुःख उठा लेते है और अपने अशुभ कर्म क्षीण कर लेते है।
ऐसे संत महात्मा या सज्जन पुरुष होकर भी कैसा दुःख भोग रहे है।जबकि पापी दुष्ट और बेईमान मजे कर रहे है।इसका भी यही रहस्य है की सुख और मजे भोगने वाला शुभ कर्मो को क्षीण कर रहा होता है अपने शुभ कर्मो का फल भोग रहा होता है।